गुलशन पे गुल पे और फ़ज़ाओं पे ख़ाक डाल फिर भी बचे तो मेरी सदाओं पे ख़ाक डाल ज़ुल्फ़ों पे ख़ाक डालना तौहीन-ए-हुस्न है कोई सबब निकाल घटाओं पे ख़ाक डाल इस बार तेरे काम नहीं आ सका न मैं मेरी गुज़िश्ता सारी अताओं पे ख़ाक डाल वो हाल है कि हाल जो देखूँ तो दिल कहे माज़ी पे अपने थूक वफ़ाओं पे ख़ाक डाल मेरा इलाज यार की उंगली के लम्स हैं जाने भी दे तबीबा दवाओं पे ख़ाक डाल इक बा-हया से उस की रिदा छिन न जाए देख रब्ब-ए-करीम तेज़ हवाओं पे ख़ाक डाल