गुलशन-ए-इश्क़ में ग़ुंचा भी कली होता है नाम आशिक़ का भी माशूक़-अली होता है ख़ान कहता है वहाँ मूँग-फली होता है फूल होती है पिशावर में कली होता है जब वो पढ़ती है तरन्नुम से ग़ज़ल का मतला उस की आँखों में भी ईता-ए-जली होता है एक बीवी पे जो करता है क़नाअत ता-उम्र वो तो शौहर नहीं होता है वली होता है सास ने आज खिलाई है जलेबी मुझ को नीम का पेड़ भी मिस्री की डली होता है मार्शल-ला का मैं हामी तो नहीं हूँ लेकिन दौर-ए-जम्हूर भी अब बंद गली होता है जिस के लहजे में हो शाइस्तगी-ए-तंज़-ए-लतीफ़ ऐसा शाएर ही ज़रीफ़-ए-अज़ली होता है