रोज़ रौशन रहें हालात ज़रूरी तो नहीं चाँदनी रात हो हर रात ज़रूरी तो नहीं बर्क़ गिर जाए अगर घर भी जला सकती है उस के पहलू में हो बरसात ज़रूरी तो नहीं दामन-ए-इश्क़ में रख़्शाँ हैं हज़ारों ख़ुशियाँ ग़म ही हो इश्क़ की सौग़ात ज़रूरी तो नहीं मस्त आँखों से भी हम प्यास बुझा सकते हैं बख़्शिश-ए-मीर-ए-ख़राबात ज़रूरी तो नहीं हम को रोना है तो रो लेंगे कहीं भी जा कर हुस्न की बज़्म-ए-तिलिस्मात ज़रूरी तो नहीं उन की यादों से तख़य्युल को सजाए रखिए हो कभी उन से मुलाक़ात ज़रूरी तो नहीं दिन बदलते हैं तो रिश्ते भी बदल जाते हैं उम्र भर उन की इनायात ज़रूरी तो नहीं ऐ 'शफ़क़' आप ही कुछ सूरत-ए-इज़हार करें उन की जानिब से चले बात ज़रूरी तो नहीं