गुलशन-ए-जग में ज़रा रंग-ए-मोहब्बत नीं है बुलबुल-ए-दिल कूँ किसी साथ अब उल्फ़त नीं है आश्नाई सेती मर्दुम के हूँ अज़ बस बेज़ार रुख़-ए-दर्पन की तरफ़ चश्म कूँ रग़बत नीं है क्या अजब है जो दिया जान को यकबार पतंग ता-सहर शम्अ कूँ जलने सेती फ़ुर्सत नीं है क्यूँ गरेबाँ कूँ किया चाक ज़ि-सर-ता-दामाँ गुल कूँ बुलबुल सूँ अगर तर्ज़-ए-मुरव्वत नीं है मुझ कूँ बावर नहीं पैग़ाम-ए-ज़बानी क़ासिद क्या सबब है कि तिरे हाथ किताबत नीं है मुंतख़ब कर के वरक़ दिल पे लिखे हैं अहबाब गरचे ज़ाहिर में मिरे शेर की शोहरत नीं है ना-तवानी सती बरजा है अलामत न करो रंग-ए-'दाऊद' कूँ पर्वाज़ की ताक़त नीं है