दिल-ए-दर्द-आश्ना का मुद्दआ' क्या किसी बेदाद की कीजे दवा क्या हुआ इंसाँ ही जब इंसाँ का दुश्मन शिकायत फिर किसी की क्या गिला क्या बहार-ए-ताज़ा आई गुल्सिताँ में खिलाए जाने गुल बाद-ए-सबा क्या वो कहते हैं नशेमन तर्क कीजे चली गुलशन में ये ताज़ा हवा क्या उठी इंसानियत यकसर यहाँ से यकायक ख़ू-ए-इंसाँ को हुआ क्या नहीं मा'लूम मुस्तक़बिल किसी को मराहिल पेश आएँ जाने क्या क्या उजड़ कर रह गया दो दिन में हे हे मिरे 'गुलज़ार'-ए-हिन्दी को हुआ क्या