गुम है फ़ज़ा चमन की नज़ारों को क्या हुआ गुल हैं उदास उदास बहारों को क्या हुआ क्यों उन की रौशनी है शब-ए-ग़म से दूर दूर ऐ आसमान तेरे सितारों को क्या हुआ देखे तो कोई उन का तग़ाफ़ुल कि बाद-ए-मर्ग वो पूछते हैं दर्द के मारों को क्या हुआ क़ारून-ए-वक़्त है मिरी हालत पे ता'ना-ज़न परवरदिगार तेरे सहारों को क्या हुआ बार-ए-गराँ हुए हैं तकल्लुम के फूल भी राहों में चलते-फिरते मज़ारों को क्या हुआ महफ़ूज़ अहल-ए-ज़ुल्म का क़स्र-ए-हयात है ऐ दिल की आह तेरे शरारों को क्या हुआ वो तो हवा-ए-वक़्त के झोंके थे ऐ 'ख़लीक़' क्यों आज सोचते हो कि यारों को क्या हुआ