गुमाँ की हद से गुज़र कर यक़ीं की हद में आए वो आसमान अगर है ज़मीं की हद में आए मकीं तो रहते हैं हर दम मकान की हद में कभी मकाँ भी तो अपने मकीं की हद में आए तमाम उम्र उसे ढूँढती रहीं आँखें वो आ सके तो दम-ए-वापसीं की हद में आए उसे मिलेगा सुराग़-ए-अदम सुराग़-ए-वजूद जो हाँ की हद से निकल कर नहीं की हद में आए ये कैसे साँप हैं जो दूध जा-ब-जा पी कर पनाह लेने मिरी आस्तीं की हद में आए तमाम लोग हुए रज़्म-ओ-बज़्म का हिस्सा मगर 'ज़फ़र' किसी गोशा-नशीं की हद में आए