गुमान में है यक़ीन जैसे उगल दे सोना ज़मीन जैसे हूँ क़ैद शाम-ओ-सहर में ऐसे सदा-ब-लब हो मशीन जैसे मैं आसमाँ की पनाह में हूँ ज़मीं के मंज़र हसीन जैसे शब-ए-तमन्ना के चाँद तारे हों अपने घर में मकीन जैसे हैं मेरे अंदर के साँप बाहर है मेरे होंटों पे बीन जैसे न कोई सब्ज़ा न बेल-बूटा शजर है सहरा-नशीन जैसे तो मूरतों में भी जान आए झुका दे सर मह-जबीन जैसे