गुमान पड़ता यही है कि रहबरी हुई है ये अपनी राह किसी राह से जुड़ी हुई है हज़ार अब्र-ए-मोहब्बत यहाँ बरस भी चुके बस एक शाख़-ए-तमन्ना नहीं हरी हुई है मिली थी हम को ख़ुदा से बहिश्त के बदले मगर ये ज़िंदगी मेआ'र से गिरी हुई है उफ़ुक़ पे फैला हुआ है फ़िराक़-ए-यार का रंग उदास शाम मिरी गोद में पड़ी हुई है उठा ले हाथ मिरे चारागर कि इस दिल में सलीब-ए-हसरत-ए-ग़म मुस्तक़िल गड़ी हुई है