गुमाँ से दूर हो ऐसा ख़याल पैदा कर जवाब जिस का न हो वो सवाल पैदा कर तुझे भुला के भी सदियाँ भुला नहीं सकतीं मगर ये शर्त है ख़ुद में कमाल पैदा कर ख़लिश है दिल में तो फिर लज़्ज़त-ए-हयात भी है अगर नहीं है तो कोई मलाल पैदा कर तमाम आलम-ए-इम्काँ में हुस्न है तेरा जो तू नहीं है तो कोई मिसाल पैदा कर सँभालने को ज़रूरी है टूटना दिल का अगर शिकस्ता नहीं है तो बाल पैदा कर वो दिन भी आएगा बोलेगा मुँह से फ़न तेरा मुसव्विरी में कमाल-ए-जमाल पैदा कर तू अपने शे'रों की हिद्दत से काम ले ऐ 'शाद' दिलों में जोश लहू में उबाल पैदा कर