गूँगे लबों पे हर्फ़-ए-तमन्ना किया मुझे किस कोर-चश्म-शब में सितारा किया मुझे ज़ख़्म-ए-हुनर को समझे हुए है गुल-ए-हुनर किस शहर-ए-ना-सिपास में पैदा किया मुझे जब हर्फ़-ना-शनास यहाँ लफ़्ज़-फ़हम हैं क्यूँ ज़ौक़-ए-शेर दे के तमाशा किया मुझे ख़ुशबू है चाँदनी है लब-ए-जू है और मैं किस बे-पनाह रात में तन्हा किया मुझे दी तिश्नगी ख़ुदा ने तो चश्मे भी दे दिए सीने में दश्त आँखों में दरिया किया मुझे मैं यूँ सँभल गई कि तिरी बेवफ़ाई ने बे-ए'तिबारियों से शनासा किया मुझे वो अपनी एक ज़ात में कुल काएनात था दुनिया के हर फ़रेब से मिलवा दिया मुझे औरों के साथ मेरा तआ'रुफ़ भी जब हुआ हाथों में हाथ ले के वो सोचा किया मुझे बीते दिनों का अक्स न आइंदा का ख़याल बस ख़ाली ख़ाली आँखों से देखा किया मुझे