मुश्ताक़ ब-दस्तूर ज़माना है तुम्हारा आने से फ़ुसूँ-ख़ेज़ न आना है तुम्हारा लैला की हिकायत भी हिकायत है तुम्हारी शीरीं का फ़साना भी फ़साना है तुम्हारा इस दिल की ख़बर तुम से ज़ियादा किसे होगी अंदाज़ मगर बे-ख़बराना है तुम्हारा तुम हुस्न-ए-मुजस्सम हो बिला-शिरकत-ए-ग़ैरे ना-क़ाबिल-ए-तक़्सीम ख़ज़ाना है तुम्हारा दिल में कोई आ जाए तो वापस नहीं जाता दुश्वार यहाँ से कहीं जाना है तुम्हारा तुम से मुतअस्सिर हैं नए हों कि पुराने उस्लूब नया है कि पुराना है तुम्हारा क्यूँ रौशनी-ओ-रंग से मा'मूर न हो दिल सुनसान सही आइना-ख़ाना है तुम्हारा समझाया बुझाया न करो दिल को 'शुऊर' अब कम्बख़्त ने कहना कभी माना है तुम्हारा