गुनगुनाती सी कोई रात भी आ जाती है आप आते हैं तो बरसात भी आ जाती है हम को हर-चंद गवारा नहीं आँसू लेकिन अपनी झोली में ये ख़ैरात भी आ जाती है आरज़ूओं के जनाज़े ही नहीं पलकों पर बिजलियों की कभी बारात भी आ जाती है गर्दिश-ए-जाम से हट कर भी तिरी आँखों से वज्द में गर्दिश-ए-हालात भी आ जाती है वो फ़साने जो मिरे नाम से मंसूब हुए उन फ़सानों में तिरी बात भी आ जाती है