गुज़रते लम्हे बहुत कुछ सिखा गए मुझ को By Ghazal << हर सदी में क़िस्सा-ए-मंसू... सफ़र और धूप का जंगल इलाही >> गुज़रते लम्हे बहुत कुछ सिखा गए मुझ को मैं एक ज़र्रा था सूरज बना गए मुझ को हज़ार रंज-ओ-मसाइब थे और मैं तन्हा ग़म-ओ-अलम के ये इफ़रीत खा गए मुझ को मैं अपने आप को भूला हुआ था बरसों से ये आइने मिरी सूरत दिखा गए मुझ को Share on: