हाल अच्छा है न ही होश ठिकाने से है बे-क़रारी का ये आलम तो ज़माने से है एक मुद्दत से मयस्सर नहीं घर को रौनक़ उस पे परहेज़ तुम्हें हँसने हँसाने से है ना-ख़ुशी बेबसी हो जाएँ नुमायाँ साहब फ़ाएदा दुश्मनों को हाल छुपाने से है चल ज़रा अपनी रिवायत से अलग रस्ते पर अब के ख़तरा भी तो ख़तरा न उठाने से है जैसा है वैसा रहेगा ये जहाँ मेरे दोस्त इस को मतलब न तिरे आने न जाने से है ले गया लूट के जो मुल्क की दौलत यारो वो कोई चोर नहीं राज-घराने से है