हाल दिल का उसे जताना क्या न सुने जो उसे सुनाना क्या आए जब आगे ऐसे ज़ालिम के जौर-ए-गर्दूं से मुँह छुपाना क्या हम से चलता है टेढ़ की ऐ लो हो गया है फ़लक दिवाना क्या सरफ़रोशों की है ये ऐन मुराद कू-ए-क़ातिल में जा के आना क्या पूछते क्या हो मस्कन-ए-आशिक़ बे-घरों का अजी ठिकाना क्या जान-ओ-दिल ले के अब ख़फ़ा है क्यूँ हम ने कहना तिरा न माना क्या दिल-ए-ख़ुद-रफ़्ता का इलाज करे कोई नादान और दाना क्या ले के दिल जो कि दुश्मन-ए-जाँ हो 'ऐश' ऐसे से दिल लगाना क्या