हाल पर मेरे ऐ नासेह-ए-मोहतरम आप को कम से कम सोचना चाहिए मेरे पहलू में दिल दिल में फ़ुर्क़त का ग़म आप को कम से कम सोचना चाहिए दिल को तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ तो मंज़ूर है ये मगर कोशिश-ए-ज़ब्त से दूर है मुझ पे करने से पहले ये ताज़ा सितम आप को कम से कम सोचना चाहिए ख़ुद उसूलों का अपने परस्तार हूँ बाहमी तफ़रक़ों से मैं बेज़ार हूँ रिंद-मशरब हूँ मैं अहल-ए-दैर-ओ-हरम आप को कम से कम सोचना चाहिए यूँ न ज़ुल्फ़ों को शानों पे बिखराइए इन को सुलझाइए इन को सुलझाइए जान लेंगे किसी की ये ज़ुल्फ़ों के ख़म आप को कम से कम सोचना चाहिए यूँ किनारे पे लीजे न अंगड़ाइयाँ यूँ नहाती हैं पानी में परछाइयाँ इस किनारे पे हैरत-ज़दा से हैं हम आप को कम से कम सोचना चाहिए आज वक़्त-ए-सहर और ब-वक़्त-ए-अज़ाँ मय-कदे की तरफ़ जा रहे हो कहाँ कह रहे हैं ये सब 'आसी'-ए-मोहतरम आप को कम से कम सोचना चाहिए