हाल से बेहाल जैसे लोग हैं हिप्पियों के बाल जैसे लोग हैं मुफ़लिसों कंगाल जैसे लोग हैं ये मेरे सुसराल जैसे लोग हैं फूल जाते हैं ज़रा सी बात पर क्या चने की दाल जैसे लोग हैं गुल से ख़ाली और काँटों से भरे खेजड़े की डाल जैसे लोग हैं आ के हाथों में फिसल जाते हैं ये रेशमी रूमाल जैसे लोग हैं एक कोने में पड़े हैं बे-हिसाब लकड़ियों की टाल जैसे लोग हैं तेरी राहों में बिछे हैं हर तरफ़ देख ले तिरपाल जैसे लोग हैं ढो रहे हैं ज़िंदगी के बोझ को हम सभी हम्माल जैसे लोग हैं 'बे-तकल्लुफ़' दुष्ट एक तू ही नहीं और भी चंडाल जैसे लोग हैं