ज़माने भर से डर कर क्या करूँ मैं डरूँ तो अपनी बीवी से डरूँ मैं किसी दिन फेंक देना उन के ऊपर मरूँ तो उन के ऊपर ही मरूँ मैं कहीं से शाम की मिल जाए रोटी ये भूका हाथ अब किस पर धरूँ मैं दवा खाऊँ कि रोटी या कि हलवा ये दस का नोट है क्या क्या करूँ मैं इजाज़त हो तो तेरे घर में आ कर सहर से शाम तक पानी भरूँ मैं बड़े घर का मुझे दामाद कर दे पराठे रोज़ फोकट में चरूँ मैं चलो शाइ'र तो मैं ख़ुद बन गया हूँ कोई बतलाए के अब क्या करूँ मैं कभी रोऊँ कभी मच्छर भगाऊँ वो सोए रात भर जागा करूँ मैं छुपा लूँ 'बे-तकल्लुफ़' मैं भी कट्टे सऊदी जा के फिर चंदा करूँ मैं