हालात साज़गार बनाने में रह गया वो अपना बार-ए-ज़ीस्त उठाने में रह गया दुनिया के साथ चल न सका वो ज़ियाँ-नसीब वो गोशा-गीर अपने ठिकाने में रह गया सूरज ने एक बार पुकारा तो था उसे वो अपने ज़ेहन-ओ-दिल को जगाने में रह गया जीने का हौसला जो मिरे दिल में था कभी शायद किसी गुज़िश्ता ज़माने में रह गया ख़ुद अपनी मंज़िलों के तजस्सुस से बे-ख़बर वो दूसरों को राह दिखाने में रह गया वो महव-ए-गुफ़्तुगू थे किसी और से 'कँवल' मैं उन को अपनी बात सुनाने में रह गया