हब्स ही हब्स है हवा भी नहीं कोई खिड़की न दर खुला भी नहीं वो मसाफ़त कि पैर ज़ख़्मी हैं चाक-दामन सिला हुआ भी नहीं कश्ती तूफ़ाँ में घिर गई मेरी और मिरे साथ नाख़ुदा भी नहीं नाँ कोई हीर हूँ न सोहनी हूँ पार जाने का हौसला भी नहीं वक़्त के भी अजीब चक्कर हैं मुझ को ये वक़्त पर मिला भी नहीं माँ तो बचपन में मर गई मेरी अब मिरे साथ इक दुआ भी नहीं हाए ये ज़ीस्त का सफ़र 'कोकी' कट गया है मगर कटा भी नहीं