हद हो चक्की है शर्म-ए-शकेबाई ख़त्म हो बेहतर है अब दुआ की पज़ीराई ख़त्म हो लेंगे हिसाब मुझ से अभी लफ़्ज़ लफ़्ज़ का यानी ज़रा ये अंजुमन-आराई ख़त्म हो देखा है इस नवाह में वो कुछ कि ऐ ख़ुदा अब तो यही दिखा कि ये बीनाई ख़त्म हो मुमकिन है मुंतज़िर हो कोई ख़ाक-ए-ख़ुश-ख़िसाल शायद कहीं ये साहिल-ए-रुस्वाई ख़त्म हो है दूद ख़ाक-दार बहुत पाक हो हवा पानी है ज़ेर-ए-बार बहुत काई ख़त्म हो ख़ुश-रंग में घुला हुआ बद-रंग हो जुदा और शोर में छुपी हुई तन्हाई ख़त्म हो अपने मुक़ाबिल आप ही आ जाऊँगा कभी तंग आ चुका हूँ अब मिरी यकताई ख़त्म हो आकर वो मेरी बात सुने और जवाब दे गर यूँ नहीं तो फिर ये शनासाई ख़त्म हो बाज़ार-ए-बोसा तेज़ से है तेज़-तर 'ज़फ़र' उम्मीद तो नहीं कि ये महँगाई ख़त्म हो