किसी कशिश के किसी सिलसिले का होना था हमें भी आख़िरश इक दाएरे का होना था अभी से अच्छा हुआ रात सो गई वर्ना कभी तो ख़त्म-ए-सफ़र रतजगे का होना था बरहना-तन बड़ी गुज़री थी ज़िंदगी अपनी लिबास हम को ही इक दूसरे का होना था हम अपना दीदा-ए-बीना पहन के निकले थे सड़क के बीच किसी हादसे का होना था हमारे पाँव से लिपटी हुई क़यामत थी क़दम क़दम पे किसी ज़लज़ले का होना था हम अपने सामने हर लम्हा मरते रहते थे हमारे दिल में किसी मक़बरे का होना था तमाम रात बुलाता रहा है इक तारा उफ़ुक़ के पार किसी मोजज़े का होना था किसी के सामने उट्ठी नज़र तो बह निकला हमारी आँख में क्या आबले का होना था हिसार-ए-शहर से बाहर निकल ही आए हैं कभी हमें भी किसी रास्ते का होना था