हद मोहब्बत की पार भी कर ली By Ghazal << ग़ैर के घर बन के डाली जाए... चला-चल मोहलत-ए-आराम क्या ... >> हद मोहब्बत की पार भी कर ली और फिर ख़ुद पे शाइरी कर ली उस क़नाअत-पसंद से मिल कर मेरे ग़ुस्से ने ख़ुद-कुशी कर ली हिज्र का एक पल भी सह न सका उस के ऑफ़िस में नौकरी कर ली नींद को आँख पर लपेट लिया और फिर रात की घड़ी कर ली Share on: