हद से गुज़री है इब्तिला मेरी अब तो सुन ले मिरा ख़ुदा मेरी आज बेगाना वो निगाहें हैं थीं जो मुद्दत से आश्ना मेरी कौन करता है मुझ ग़रीब पे रहम कौन सुनता है इल्तिजा मेरी हूँ वो बीमार-ए-ग़म कि मुश्किल से कर सकेगा कोई दवा मेरी न मिला दिल का क़द्र-दाँ न मिला यूँ ही रुस्वा हुई वफ़ा मेरी कोई इंसाफ़ भी है दुनिया में बढ़ गई जुर्म से सज़ा मेरी बात कुछ बन गई तो जानूँगा काम कुछ कर गई दुआ मेरी ढूँढता हूँ सुकून-ए-दिल 'हैरत' ये ख़ता है तो है ख़ता मेरी