हलाक-ए-ग़म्ज़ा-ए-बातिल नहीं है मिरे सीने में ऐसा दिल नहीं है नहीं है इक सुकून-ए-दिल नहीं है वगर्ना क्या मुझे हासिल नहीं है ज़माने की मसीहाई से हासिल वही जब चारासाज़-ए-दिल नहीं है यही कहता हूँ दिल से हर क़दम पर अरे ज़ालिम यही मंज़िल नहीं है वो ऐसा कौन सा आँसू है जिस में मिरा ख़ून-ए-जिगर शामिल नहीं है मोहब्बत से कोई देखे तो देखे कि दिल है कासा-ए-साइल नहीं है रहीन-ए-ग़म सही 'हैरत' मगर दिल चराग़-ए-कुश्ता-ए-महफ़िल नहीं है