हदीस-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत का राज़दाँ हूँ मैं जो मावरा-ए-तकल्लुम है वो बयाँ हूँ मैं ब-क़ैद-ए-होश न वाबस्ता-ए-फ़ुग़ाँ हूँ मैं ये क्या मक़ाम है ऐ दिल बता कहाँ हूँ मैं भटक गया हूँ कि नज़दीक-ए-आस्ताँ हूँ मैं ख़याल-ए-दोस्त ठहर देख लूँ कहाँ हूँ मैं असीर-ए-वहम हूँ पा-बस्ता-ए-गुमाँ हूँ मैं यक़ीं कि हद से अभी दूर हूँ जहाँ हूँ मैं भुला दिया जिसे दुनिया ने वो फ़साना हूँ सुने न जिस को ज़माना वो दास्ताँ हूँ मैं तिरी निगाह में वो क्या है क्या नहीं मालूम वो लफ़्ज़ जिस का ब-ईं-हाल तर्जुमाँ हूँ मैं निगाह-ए-बर्क़ में दिन रात यूँ खटकता हूँ चमन में जैसे कोई शाख़-ए-आशियाँ हूँ मैं जिसे न मिल सका उनवाँ वो इक फ़साना हूँ जो ना-तमाम है 'ज़मज़म' वो दास्ताँ हूँ मैं