बता तू ही कि तेरी याद कैसे दूर हो दिल से भरे दरिया की मौजें भी कहीं हटती हैं साहिल से गुल-ओ-लाला तो हैं ऐ बाग़बाँ ख़ामोश तस्वीरें चमन बेदार होता है फ़क़त शोर-ए-अनादिल से सँभलने दे ज़रा ऐ ज़ौक़-ए-ग़र्क़ाबी सँभलने दे पुकारा है किसी ने डूबने वाले को साहिल से इरादा उस मुसाफ़िर का कोई समझे तो क्या समझे हज़ारों बार जा कर जो पलट आया हो मंज़िल से उधर की नर्गिस-ए-मख़मूर ने तीर-अफ़गनी 'ज़मज़म' इधर उट्ठी सदा-ए-आफ़रीं उश्शाक़ के दिल से