हादिसा क़हर-ओ-ग़ज़ब तेग़-ओ-तबर ले लेना मौत का शहर है जीने का हुनर ले लेना कौन जाने कि शब-ए-तार ढले या न ढले दिल के ज़ख़्मों ही से तस्कीन-ए-सहर ले लेना तन्हा इस शहर में निकलोगे तो लुट जाओगे कौन हमदर्द कोई अहल-ए-सफ़र ले लेना मेरे किरदार को आईना दिखाने वालो जाएज़ा अपने भी दामन का मगर ले लेना आज ले आएगा 'कैफ़ी' वो असासा ग़म का एक ने'मत है जो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर ले लेना