हादिसा क्या हुआ ख़ुदा जाने जम्अ' हैं गिर्द अपने बेगाने एक दिल और सैंकड़ों नासेह कैसे हर एक का कहा माने आते जाते हैं किस लिए ये लोग आज क्या हो गया ख़ुदा जाने हर घड़ी सब्र-ओ-ज़ब्त की तल्क़ीन खुल के रोने दिया न दुनिया ने ज़ख़्म सीने पे अश्क आँखों में बस यही कुछ दिया है दुनिया ने प्यास बुझती थी जिस से रिंदों की देख ख़ाली हैं अब वो पैमाने दिल में रौशन हैं याद की शमएँ जल-बुझे आरज़ू के परवाने बढ़ गई और दिल की बेताबी कौन आया है आज समझाने दिल को क्या क्या दिए फ़रेब के दर्स ज़िंदगी भर तिरी तमन्ना ने रह न जाना उलझ के ऐ नादाँ ज़ुल्फ़-ए-गीती चला है सुलझाने शहर में तेरे इश्क़ के ऐ 'राज़' जितने मुँह आज उतने अफ़्साने