हदीस-ए-शौक़ कहें या करें हयात की बात हर एक बात तिरी चश्म-ए-इल्तिफ़ात की बात ख़िज़ाँ का ज़िक्र भला मौसम-ए-बहार में क्या तुलूअ'-ए-सुब्ह-ए-दरख़्शाँ में कैसी रात की बात हदीस-ए-दर्द-ओ-अलम को अगर अलग कर लें तो किस ज़बाँ से करें कर्ब-ए-काएनात की बात बहार-ए-मय-कदा-ओ-साक़ी-ओ-शराब-ओ-शबाब कोई सुने तो कहें दिल के वारदात की बात ग़म-ए-हयात का दरमाँ न कर सके लेकिन बहुत ही ग़ौर से सुनते रहे हयात की बात रह-ए-तलब में नशेब-ओ-फ़राज़-ए-मंज़िल की उन्हें ख़बर जो समझते हैं हादसात की बात मैं अपने होश भी क़ाएम न रख सका जब 'फ़ैज़' वो एक रात का क़िस्सा है एक रात की बात