बेगाना-ए-शुऊर-ए-वफ़ा हो गया वो शख़्स ये क्या हुआ कि मुझ से ख़फ़ा हो गया वो शख़्स जिस से मिली थी मेरी तमन्ना को रौशनी ऐ तीरगी-ए-बख़्त ख़फ़ा हो गया वो शख़्स उतरा था बू-ए-गुल की तरह मेरी रूह में ऐसा गया कि मौज-ए-हवा हो गया वो शख़्स हम ने जिसे सहीफ़ा-ए-उल्फ़त समझ लिया बे-मेहरी-ए-जहाँ की अदा हो गया वो शख़्स अल्लह रे उस की याद के गजरे हरे रहें उजड़े हुए दिलों की दवा हो गया वो शख़्स सुनते हैं एक 'फ़ैज़' ग़रीब-उद-दयार था हक़ मग़्फ़िरत करे कि क़ज़ा हो गया वो शख़्स