हदों से बढ़ के मुकम्मल हुदूद सौंपता हूँ तिरी थकन को मैं अपना वजूद सौंपता हूँ रगों में ख़ून की हिद्दत से ख़ुश्क-साली है मैं उस रवानी को रस्म-ए-जुमूद सौंपता हूँ वो मुझ से दूर तो मैं उस से दूर होने लगा मैं बरगुज़ीदा अज़िय्यत को सूद सौंपता हूँ मैं सौंप देने की मंज़िल तलक नहीं पहुँचा मगर किसी को क़याम-ओ-सुजूद सौंपता हूँ वो बे-ज़बान ख़ुदा कर रहा था सरगोशी मैं मा'रिफ़त के तनासुब से जूद सौंपता हूँ तो क्या ये लफ़्ज़ भी ख़ाली हैं मा'नविय्यत से ज़बूर-ए-जिस्म को रूह-ए-दऊद सौंपता हूँ मिरा वजूद मदीना शुमार होता है मैं जब भी दिल से दहन को दरूद सौंपता हूँ नबी का बेटा हूँ निस्बत है मो'तबर मेरी किसी को फ़क़्र किसी को नुमूद सौंपता हूँ अयाँ भी होना है लेकिन निहाँ भी रहना है सो ग़ाएबाना अदा को वरूद सौंपता हूँ मुझे है ख़ौफ़-ए-ज़माना न नीचे दब जाए मैं अपने सर का फ़लक को उमूद सौंपता हूँ तू मेरी आँख के हुजरे में लौट आएगा मैं तुझ को दोनों-जहाँ की हुदूद सौंपता हूँ तू देखने का इरादा तो बाँध ऐ 'काज़िम' मैं तेरी आँख को रम्ज़-ए-शुहूद सौंपता हूँ