हादसे जो शहर में होते रहे हैं सब हमारे नाम से जोड़े गए हैं सोमनात-ए-दिल को ख़ुद ढाया है मैं ने मेरे अंदर कितने बुत टूटे हुए हैं तय किया है हम ने दश्त-ए-ना-शनासी हम भरे बाज़ार में तन्हा हुए हैं इस बुलंदी का भरोसा कुछ नहीं है रेत के टीलों पे हम बैठे हुए हैं राब्ता रूहों में कैसे रह सकेगा जिस्म के रिश्ते जहाँ टूटे हुए हैं सोने वालो अब तो खोलो अपनी आँखें जागते लम्हे सदाएँ दे रहे हैं ‘अस्र-ए-हाज़िर में हुई हैं दूरियाँ कम फ़ासले लेकिन दिलों के बढ़ गए हैं कर्ब से तख़्लीक़ के गुज़रे हैं कब वो तब्सिरा जो मेरे फ़न पर कर रहे हैं