मिरा अफ़्साना-ए-हस्ती अधूरा लिख दिया जाए मिरी तक़दीर के ख़ाने में तन्हा लिख दिया जाए हुजूम-ए-यास में जीने का फ़न तो मुझ को आता है जो है इमरोज़ उन को मेरा फ़र्दा लिख दिया जाए हमें बे-मेहरी-ए-अहबाब ने ये दिन दिखाए हैं जो पूछे हाल-ए-दिल उस को शनासा लिख दिया जाए नए माहौल में आसाँ नहीं है ज़िंदगी करना इसे तो प्यास का इक सख़्त सहरा लिख दिया जाए हमारा नाम भी हो ज़िंदगी पर मरने वालों में हमारे सर में भी जीने का सौदा लिख दिया जाए यही सरगोशियाँ करती है अक्सर मस्लहत-बीनी शब-ए-तारीक को भी अब सवेरा लिख दिया जाए गुज़ारिश है यही 'मेहदी' हर इक हक़-गो मोअर्रिख़ से समंदर को भी अस्र-ए-नौ में प्यासा लिख दया जाए