हादसे प्यार में ऐसे भी तो हो जाते हैं रत-जगे ख़ेमा-ए-तस्कीन में हो जाते हैं बाज़ औक़ात तिरा नाम बदल जाता है बाज़ औक़ात तिरे नक़्श भी खो जाते हैं चलते चलते किसी रस्ते के किनारे पे कहीं याद के फूल मसाफ़त में पिरो जाते हैं तुझ को देखा है तो आसार नज़र आए हैं तुझ को देखा है तो माज़ी को भी रो जाते हैं हम चले जाते हैं इस शहर के जंगल से कहीं तुम हमें दर्द की ख़ैरात तो दो जाते हैं