हाए दम भर भी दिल ठहर न सका हाथ सीने पे कोई धर न सका आईना किस से देखा जाता है रश्क के मारे वो सँवर न सका रह गया आँख में नज़ाकत से दिल में नक़्शा तिरा उतर न सका इस जहाँ से गुज़र गए लाखों उस गली से कोई गुज़र न सका मय-कशी से नजात मुश्किल है मय का डूबा कभी उभर न सका मेरा नामा ख़त-ए-मुक़द्दर था कि नज़र से तिरी गुज़र न सका जो तिरे इश्क़ में तबाह हुआ कोई उस को तबाह कर न सका आग ऐसी लगी थी सीने में आँख से दिल में वो उतर न सका मौसम-ए-गुल में भी 'जलील' अफ़्सोस दामन अपना गुलों से भर न सका