हाए दम भर भी दिल ठहर न सका हाथ सीने पे कोई धर न सका आईना किस से देखा जाता है रश्क के मारे वो सँवर न सका रह गया आँख में नज़ाकत से दिल में नक़्शा तिरा उतर न सका वुसअत-ए-ज़र्फ़ से रहा महरूम जाम मेरा किसी से भर न सका इस जहाँ से गुज़र गए लाखों इस गली से कोई गुज़र न सका मय-कशी से नजात मुश्किल है मय का डूबा कभी उभर न सका अश्क जारी थे याद-ए-गेसू में रात भर क़ाफ़िला ठहर न सका मौसम-ए-गुल में भी 'जलील' अफ़्सोस दामन अपना गुलों से भर न सका