हाए तक़दीर कि जीने का सहारा टूटा जब किनारे लगी कश्ती तो किनारा टूटा दिल की दुनिया में उजाले का कहीं नाम नहीं ज़िंदगी जिस से थी रौशन वो सितारा टूटा पहले उम्मीद में जीते थे बहार आने की जब बहार आई तो जीने का सहारा टूटा ज़िंदगी होती है दम-भर के लिए दुनिया में बुलबुला कर के ये हसरत से इशारा टूटा क़तरा-ए-अश्क गिरा आँख से जिस दम कोई दिल पुकार उट्ठा कि उम्मीद का तारा टूटा बे-तलब जब थे तो तालिब थी हमारी दुनिया अब तलब है तो जहाँ-भर का सहारा टूटा खुलते ही बहर में उफ़ फूट गई चश्म-ए-हबाब ना-गहाँ सिलसिला-ए-ज़ौक़-ए-नज़ारा टूटा साक़ी-ए-बज़्म ने वो ठेस लगाई कि 'अज़ीज़' जाम-ओ-मीना ही नहीं दिल भी हमारा टूटा