हाए उस बे-ख़ुद-ए-शबाब का रंग लाल अँगारा सा शराब का रंग हो गया ख़ून हसरत-ए-दीदार दे दिया अश्क ने शहाब का रंग उस की ख़ुश-बू गुलाब की ख़ुश-बू रंग उस शोख़ का गुलाब का रंग सत्या-नास हो गया दिल का क्या कहूँ उस जले कबाब का रंग बिजलियाँ दुश्मनों पे गिरती हैं देख कर मेरे इज़्तिराब का रंग वो सर-ए-शाम सैर को निकले पड़ गया ज़र्द आफ़्ताब का रंग उस के रुख़ पर निखर गई सुर्ख़ी अल्लाह अल्लाह उस हिजाब का रंग माँद है रात-दिन तिरे आगे माहताब और आफ़्ताब का रंग इतनी शोख़ी 'सफ़ी' किसी में कहाँ रंग में रंग तो शराब का रंग