सग-ए-लैला के नक़्श-ए-पा हैं हम या'नी मजनूँ के रहनुमा हैं हम क्यूँ न हो दुश्मनों के घर मातम दोस्त के कुश्ता-ए-जफ़ा हैं हम तुम को दिल की भी है कसू के ख़बर दिल में ख़ुश हो कि दिल-रुबा हैं हम जिस क़दर हम को समझिए बे-क़द्र क़द्र में उस से भी सिवा हैं हम क्यूँ न मिट्टी ख़राब हो अपनी इस ख़राबात की बिना हैं हम किस से रखिए ग़ुबार ऐ 'मारूफ़' एक आलम की ख़ाक-ए-पा हैं हम