जब तक कि तबीअ'त से तबीअत नहीं मिलती हों प्यार की बातें भी तो लज़्ज़त नहीं मिलती आराम घड़ी-भर किसी करवट नहीं मिलता राहत किसी पहलू शब-ए-फ़ुर्क़त नहीं मिलती जब तक वो खिंचे बैठे हैं दिल उन से रुका है जब तक नहीं मिलते वो तबीअ'त नहीं मिलती जीते हैं तो होती है उन आँखों से नदामत मरते हैं तो उस लब से इजाज़त नहीं मिलती उस ज़ोहद पर नाज़ाँ न हो ज़ाहिद से ये कह दो तस्बीह फिराने ही से जन्नत नहीं मिलती क्या ढूँढते हैं गोर-ए-ग़रीबाँ में वो आ कर किस कुश्ता-ए-रफ़्तार की तुर्बत नहीं मिलती किस तरह मिरे घर वो 'हफ़ीज़' आएँ कि उन को ग़ैरों की मुदारात से फ़ुर्सत नहीं मिलती