जान ही जाए तो जाए दर्द-ए-दिल इक यही है अब दवा-ए-दर्द-ए-दिल अब तड़पने में मज़ा मिलता नहीं हो चली जाँ आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल इम्तिहान-ए-ज़ब्त है मंज़ूर आज जिस क़दर चाहे सताए दर्द-ए-दिल भागती है दूर जिस से मौत भी वो बला है ये बला-ए-दर्द-ए-दिल रहम कब आया किसी बे-दर्द को हो चुकी जब इंतिहा-ए-दर्द-ए-दिल खा के कुछ सो रहते हैं हिर्मां-नसीब एक ये भी है दवा-ए-दर्द-ए-दिल हम मरीज़ों का नहीं मुमकिन इलाज ला-दवा हैं मुब्तला-ए-दर्द-ए-दिल रहती है सीने ही पर तस्वीर-ए-दोस्त है ये ता'वीज़ इक बरा-ए-दर्द-ए-दिल रोते रोते बंध गई हिचकी 'हफ़ीज़' जब कहा कुछ माजरा-ए-दर्द-ए-दिल