है असलियत कि मिरा हुस्न-ए-ज़न नहीं मालूम हुआ है कौन ये जुज़्व-ए-बदन नहीं मालूम नफ़स नफ़स में धुएँ का गुमान होता है कहाँ छुपा है वो शो'ला-फ़गन नहीं मालूम कहाँ से आई है ऐसी चमक-दमक उन में ये कौन लोग हैं गुल-पैरहन नहीं मालूम शुऊ'र-ए-ज़ीस्त न इज़हार-ए-मुद्दआ-ए-हयात कलाम करते हैं तर्ज़-ए-सुख़न नहीं मालूम ग़ज़ब ख़ुदा का मसीहा-ए-अहल-ए-फ़न वो हैं जिन्हें नज़ाकत-ए-अर्बाब-ए-फ़न नहीं मालूम न ताब-ए-दश्त-नवर्दी न शहरियत की उमंग मिरा जुनूँ हो कहाँ ख़ेमा-ज़न नहीं मालूम ब-क़द्र-ए-हौसला 'हामिद' ग़ज़ल-सरा हूँ मैं इजारा-दारी-ए-अर्बाब-ए-फ़न नहीं मालूम