है बाग़-ए-तमन्ना की बहार अपनी जगह ख़ूब गुल अपनी जगह ख़ूब हैं ख़ार अपनी जगह ख़ूब ये ख़ेमा-ज़नी राह में अपनी जगह अच्छी उठता हुआ मंज़िल पे ग़ुबार अपनी जगह ख़ूब हम जितने तलबगार वो उतना ही गुरेज़ाँ हम अपनी जगह ख़ूब हैं यार अपनी जगह ख़ूब कम अपनी जगह दश्त-ए-मसाफ़त में नहीं है माना कि हैं ये शहर-ओ-दयार अपनी जगह ख़ूब मिल जाए जो क़ैद-ए-ग़म-ए-दुनिया से रिहाई फिर तो है तिरे ग़म का हिसार अपनी जगह ख़ूब फिर एक भी पल अरसा-ए-महशर से नहीं कम कुछ देर सितारों का शुमार अपनी जगह ख़ूब बे-सब्री-ए-हिज्राँ में भी इक बात है 'ख़ावर' हर-चंद कि हैं सब्र-ओ-क़रार अपनी जगह ख़ूब