सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता बे-नियाज़ दिल बन कर देख किया नहीं मिलता ज़िंदगी-ए-रफ़्ता का कुछ पता नहीं मिलता ख़ाक-ए-पा तो मिलती है नक़्श-ए-पा नहीं मिलता उस का आइना है दिल जा-ब-जा नहीं मिलता दिल में जब हो तारीकी फिर ख़ुदा नहीं मिलता आमद-ए-बहाराँ का इक पयाम लाने से क्यूँ तिरा दिमाग़ आख़िर ऐ सबा नहीं मिलता आइना-ब-आईना हम ने देख डाले दिल एक सा ज़माने में दूसरा नहीं मिलता जो तिरी निगाहों से बे-पिए मिला साक़ी लाख जाम पी कर भी वो मज़ा नहीं मिलता ख़िज़्र-ए-राह ने कितने मीर-ए-कारवाँ लूटे हाए वो जो कहते हैं रहनुमा नहीं मिलता उस की और मंज़िल है मेरी और मंज़िल है शैख़ से 'फ़िगार' अपना रास्ता नहीं मिलता