है बपा इक हश्र सा दीवार पर कौन पढ़ता है लिखा दीवार पर मैं ने पूछा क्या पस-ए-दीवार है उस ने लिक्खा दायरा दीवार पर आओ आदाब-ए-मोहब्बत सीख लो लिख दिया है ज़ाबता दीवार पर अब न छाएगा तिलिस्म-ए-तीरगी छोड़ आया हूँ दिया दीवार पर सर उठाती सर पटख़ती है नदी मुस्कुराता है घड़ा दीवार पर छोड़ दी तेरी गली तेरा नगर पढ़ चुका हूँ फ़ैसला दीवार पर फिर कोई आँगन है कम लगने लगा फिर खड़ा है मसअला दीवार पर इस लिए 'औसाफ़' छोड़ आया हूँ घर फिर न गुज़रे सानेहा दीवार पर