है बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-जाँ सोज़-ए-निहाँ हमारा सरगर्म-ए-जल्वा-ए-ग़म हुस्न-ए-बयाँ हमारा रंग-ए-बहार-आगीं मज़मून से है पैदा ये शेर की ज़मीं है या बोस्ताँ हमारा हो नक़्श-ए-आरज़ू भी इक सूरत-ए-निगारीं गर हो मुसव्विर-ए-चीं दौर-ए-ज़माँ हमारा क्या हर्फ़-ए-मुद्दआ' है इक नश्तर-ए-रग-ए-जाँ क्यों सर्फ़-ए-ग़म है नक़्द-ए-उम्र-ए-रवाँ हमारा आग़ोश-ए-ज़ुल्म ही में पर्वर्दा हो चुके हैं क्या इम्तिहाँ करेगा ये आसमाँ हमारा सब्र-ओ-क़रार दिल में किस तरह राह पाएँ ये नाला-ए-शब-ए-ग़म है पासबाँ हमारा दिल-दाद-गान-ए-ग़म को इशरत से क्या तअ'ल्लुक़ है कूचा-ए-मुसीबत दारूल-जिनाँ हमारा ख़म्याज़ा-ए-तमन्ना है मौजिब-ए-तबाही है कौन जो उठाए बार-ए-गराँ हमारा ऐ बख़्त-ए-वाज़गूँ हम तुझ से ये पूछते हैं क्या हम को कुछ न देगा रोज़ी-रसाँ हमारा जौर-ए-फ़लक का 'मज़हर' पर्दा उठा ही देते है सद्द-ए-राह लेकिन ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ हमारा