आह में कुछ नज़र आई न असर की सूरत ये वो है नख़्ल कि देखी न समर की सूरत अपनी आग़ोश में वो माह-लक़ा शाम से है या-इलाही नज़र आए न सहर की सूरत जोश आया न मिरे दिल की तरह से उस को अब्र बरसा न कभी दीदा-ए-तर की सूरत कर दिया है ग़म-ए-फ़ुर्क़त ने मुझे ज़ार ऐसा गुम हूँ नज़रों से मगर उन की कमर की सूरत सुर्ख़-रू मैं जो हुआ नक़्द-ए-शहादत पा कर रू-सियह हो गए अग़्यार सिपर की सूरत फिर फ़रिश्ते न कभी हूर की सूरत देखें देख पाएँ जो मिरे रश्क-ए-क़मर की सूरत फूलने फलने की उम्मीद थी 'वहबी' इक दिन कर दिया इश्क़ ने अब ख़ुश्क शजर की सूरत