है गर्म मुल्कों का सूरज तिरे जलाल की गर्द ग़ुरूर-ए-काहकशाँ है तिरे जमाल की गर्द मोहब्बतों के ख़राबों में धूप कम निकली कभी जुदाई के कोहरे कभी मलाल की गर्द कभी तो गुज़रे उधर से भी कारवान-ए-बहार कभी तो पहुँचे यहाँ भी तिरे ख़याल की गर्द हमारे बालों पे मौसम है बर्फ़-बारी का हमारे चेहरे पे उड़ती है माह-ओ-साल की गर्द तमाम आलम-ए-इम्काँ है इक ख़याल में गुम न पा सकेगा ज़माना कभी ख़याल की गर्द